राजेश भाटिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रबंध संपादक
जबलपुर में संपन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक ने यह स्पष्ट कर दिया कि संघ आज केवल एक संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्र के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का जीवंत प्रतीक बन चुका है। विजयादशमी के अवसर पर आयोजित 62,555 कार्यक्रमों में 25 लाख से अधिक स्वयंसेवकों की सहभागिता ने संघ के शताब्दी वर्ष को ऐतिहासिक बना दिया।
देश के प्रत्येक भूभाग—अंडमान से लेकर लद्दाख, अरुणाचल से लेकर नागालैंड तक — विजयादशमी की गूंज ने यह सिद्ध किया कि भारत की आत्मा आज भी “एकता में विविधता” के मंत्र से ओत-प्रोत है। यह केवल संघ की नहीं, बल्कि राष्ट्र की सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति है।
संगठन की वृद्धि : समाज की गहराइयों तक विस्तार
सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के अनुसार, वर्तमान में देशभर में 55,052 स्थानों पर 87,398 शाखाएं संचालित हो रही हैं जो पिछले वर्ष से लगभग 15,000 अधिक हैं। यह वृद्धि केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि समाज के हृदय में संघ के प्रति बढ़ते विश्वास का प्रमाण है।
जनजातीय, श्रमजीवी, कृषक, विद्यार्थी और व्यवसायी वर्गों तक संघ कार्य का विस्तार बताता है कि संगठन की जड़ें अब जीवन के हर क्षेत्र में गहराई तक फैल चुकी हैं। बीते एक वर्ष में 10,000 नए स्थानों पर संघ कार्य प्रारंभ होना इसका सशक्त उदाहरण है।
वंदेमातरम्’ के 150 वर्ष : भारत की आत्मा का गीत
सरकार्यवाह ने याद दिलाया कि इस वर्ष वंदेमातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उन्होंने कहा वंदेमातरम् केवल एक गीत नहीं, भारत की आत्मा का मंत्र है। वास्तव में, यह राष्ट्रगीत भारत की मातृभूमि के प्रति उस समर्पण का प्रतीक है जो हर भारतीय के हृदय में स्पंदित होता है। 1975 में जब इसके 100 वर्ष पूर्ण हुए थे, आपातकाल के कारण समारोह स्थगित करना पड़ा। अब, जब भारत आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहा है, वंदेमातरम् की गूंज फिर से जन-जन में गर्व और ऊर्जा भर रही है।
चुनौतियाँ और परिवर्तन : मणिपुर से नक्सल क्षेत्रों तक
होसबाले ने मणिपुर की परिस्थितियों को चुनौतीपूर्ण बताते हुए कहा कि निकट भविष्य में सुधार की उम्मीद है। यह वक्तव्य संघ के समग्र दृष्टिकोण को प्रकट करता है, जो हर क्षेत्र में शांति और एकता की स्थापना चाहता है।
इसी प्रकार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों में सकारात्मक परिवर्तन , जहाँ अनेक नक्सली समाज की मुख्यधारा में लौट रहे हैं…इस बात का प्रमाण है कि सेवा और संवाद का मार्ग हिंसा पर विजय प्राप्त कर सकता है।
युवा शक्ति और अनुशासन : राष्ट्र की रीढ़
संघ का मानना है कि भारत का भविष्य उसके युवाओं के कंधों पर टिका है। तकनीक और कौशल में निपुण यह युवा वर्ग देश की प्रगति का इंजन है, किंतु नशे की प्रवृत्ति जैसी चुनौतियाँ चिंता का विषय हैं। संघ का सतत प्रयास यही है कि युवा पीढ़ी आत्मानुशासन, सेवा और राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत हो।
संघ की यात्रा : एक सदी की तपस्या और समर्पण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सौ वर्षों की यात्रा केवल संगठन का इतिहास नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के पुनर्निर्माण की सतत साधना है। सीमाओं से लेकर सागरीय तटों तक, गांवों से लेकर महानगरों तक स्वयंसेवक सेवा, शिक्षा, पर्यावरण, ग्रामोदय और आत्मनिर्भरता के कार्यों में निस्वार्थ भाव से समर्पित हैं।
आरएसएस की यात्रा में जबलपुर अब एक ऐतिहासिक पड़ाव बन गया है, जहाँ संगठन की दिशा तय करने वाले 397 पदाधिकारियों ने शताब्दी वर्ष की रूपरेखा तैयार की।
आगामी दृष्टि : ‘पंच परिवर्तन’ की ओर
बैठक में यह निर्णय हुआ कि आने वाले समय में “पंच परिवर्तन” – सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी स्वावलंबन और नागरिक उत्तरदायित्व के कार्यों पर विशेष बल दिया जाएगा। यह कार्यक्रम केवल घोषणाएँ नहीं, बल्कि भारत को आत्मनिर्भर, नैतिक और सशक्त बनाने का मार्गदर्शन हैं।
राष्ट्रभावना की नूतन चेतना
संघ के शताब्दी वर्ष का यह अध्याय आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि संगठन, सेवा और समर्पण से राष्ट्र की आत्मा को न केवल जीवित रखा जा सकता है, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है।
जब स्वयंसेवक गणवेश में अनुशासनपूर्वक मार्च करते हैं, तो वह केवल प्रदर्शन नहीं होता – वह एक संदेश होता है कि भारत आज भी अपनी जड़ों, अपनी संस्कृति और अपने कर्तव्य से जुड़ा हुआ है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शताब्दी वर्ष में जो आत्मबल, अनुशासन और संगठन की शक्ति प्रदर्शित की है, वह आने वाले भारत के निर्माण की दिशा तय करेगी।


























