भारत के इतिहास में अनेक ऐसे सम्राट हुए हैं जिन्होंने अपने पराक्रम, नीति, न्याय और संस्कृति से विश्व में भारतीयता की प्रतिष्ठा बढ़ाई। उन्हीं में से एक हैं सम्राट विक्रमादित्य, जिनका नाम केवल एक युग का नहीं बल्कि एक *संवेदनशील सांस्कृतिक दर्शन* का प्रतीक है।
उनकी पहचान केवल एक विजेता सम्राट के रूप में नहीं, बल्कि न्यायप्रिय शासक, कलाओं के संरक्षक और भारतीय कालगणना के निर्माता के रूप में होती है।
आज, जब भारत तकनीकी और डिजिटल युग की ओर तेजी से अग्रसर है, तब यह आवश्यक हो गया है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को उस गौरवशाली परंपरा से परिचित कराएँ जिसने भारत को “विश्वगुरु” बनाया था। यही कार्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य और उससे जुड़े सांस्कृतिक प्रयासों के माध्यम से सफलतापूर्वक किया है।
इतिहास को जीवंत करने का अभिनव प्रयास
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा नई दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले में अप्रैल 2025 में मंचित महानाट्य ‘सम्राट विक्रमादित्य’ केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि इतिहास को वर्तमान से जोड़ने का जीवंत सेतु बन गया।
तीन दिन तक चले इस विराट आयोजन में सैकड़ों कलाकारों ने हाथी-घोड़ों, पारंपरिक परिधानों, प्रकाश संयोजन, संगीत और नृत्य के माध्यम से उस युग को मंच पर साकार कर दिया जब भारत नीति, न्याय और शौर्य का केंद्र था।
डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में आयोजित यह कार्यक्रम यह दर्शाता है कि यदि इच्छाशक्ति और दृष्टि हो तो संस्कृति केवल संग्रहालयों तक सीमित नहीं रहती — वह जनमानस का उत्सव बन जाती है।
नई दिल्ली में इस नाट्य प्रस्तुति को देखकर देशभर के दर्शक भावविभोर हुए। मध्यप्रदेश से निकला यह सांस्कृतिक संदेश पूरे राष्ट्र में गूंजा कि रंगमंच, संगीत और अभिनय के माध्यम से भी राष्ट्रभक्ति और गौरवबोध जागृत किया जा सकता है।
संस्कृति और शिक्षा – एक ही धारा के दो तट
डॉ. मोहन यादव का दृष्टिकोण यह है कि संस्कृति केवल परंपरा नहीं, बल्कि शिक्षा का अभिन्न हिस्सा है। इसी विचार के अनुरूप उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पहलें की हैं —
विक्रमोत्सव का वार्षिक आयोजन,
विक्रम विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तित कर सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय रखना,
मुख्यमंत्री निवास पर विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की स्थापना,
और शासकीय कैलेंडर में विक्रम संवत का समावेश।
ये सब कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं, बल्कि यह संदेश देते हैं कि भारतीय कालगणना, दर्शन और संस्कृति आधुनिक भारत की पहचान का हिस्सा हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों और युवाओं को यह समझाया जाए कि विज्ञान और संस्कृति विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
विक्रमादित्य का युग इसका प्रमाण है, जहाँ खगोलशास्त्र, गणित, साहित्य और कला एक साथ फले-फूले।
विरासत से विकास’ की जीवंत व्याख्या
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जब “विरासत से विकास*” का नारा दिया था, तो उसका आशय यही था कि भारत का विकास अपनी सांस्कृतिक जड़ों से ही संभव है। डॉ. मोहन यादव ने इस विचार को जमीनी रूप दिया है। उन्होंने सिद्ध किया कि विकास केवल इंफ्रास्ट्रक्चर, उद्योग या तकनीक तक सीमित नहीं – बल्कि संस्कृति के उत्थान से ही राष्ट्र की आत्मा सशक्त होती है।
जब छात्र, कलाकार और नागरिक मंच पर या नाट्य रूप में अपने इतिहास को जीते हैं, तब देशभक्ति भावनाओं से नहीं, अनुभव से उत्पन्न होती है। यही “विरासत से विकास” का असली अर्थ है।
रंगमंच – इतिहास से संवाद का आधुनिक माध्यम
आज का युवा वर्ग मोबाइल स्क्रीन पर मनोरंजन खोजता है। ऐसे समय में रंगमंच के माध्यम से उसे *इतिहास से जोड़ना* एक दूरदर्शी कदम है।
डॉ. यादव ने यह दिखाया कि यदि विषयवस्तु सार्थक हो और प्रस्तुति जीवंत हो, तो रंगमंच आज भी समाज को शिक्षित करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।
नई दिल्ली के मंच पर ‘सम्राट विक्रमादित्य’ नाट्य प्रस्तुति ने न केवल दर्शकों को आकर्षित किया बल्कि देशभर के रंगकर्मियों में भी नया उत्साह जगाया। रंगमंच की यह पुनर्स्थापना एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में अग्रसर है।
कलाकारों को सम्मान और संरक्षण
डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश सरकार ने रंगमंच और कलाकारों को केवल मान्यता ही नहीं, बल्कि आर्थिक और संस्थागत संरक्षण भी दिया है।
राज्य सरकार द्वारा आरंभ किए गए तीन स्तरों के सम्मान —
₹5 लाख के तीन राज्य स्तरीय विक्रमादित्य सम्मान,
₹21 लाख का राष्ट्रीय विक्रमादित्य सम्म,
और ₹1 करोड़ 1 लाख का अंतरराष्ट्रीय विक्रमादित्य सम्मान
यह दर्शाते हैं कि मध्यप्रदेश न केवल संस्कृति का केंद्र है, बल्कि कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन रहा है।
यह पुरस्कार व्यवस्था केवल व्यक्तियों का सम्मान नहीं, बल्कि उन मूल्यों का सम्मान है जो *विक्रमादित्य के युग* से आज तक भारतीय सभ्यता का आधार रहे हैं — सत्य, शौर्य, न्याय और सेवा।
भविष्य की दिशा – इतिहास के नए पात्र मंच पर
‘सम्राट विक्रमादित्य’ नाट्य मंचन की सफलता ने एक नई परंपरा की शुरुआत कर दी है। अब राज्य सरकार की योजना है कि आने वाले वर्षों में राजा भोज,सम्राट अशोक,छत्रपति शिवाजी महाराज, भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण और स्वतंत्रता सेनानियो की गाथाएँ भी इसी प्रकार मंच पर जीवंत की जाएँ।
यह केवल ऐतिहासिक पुनरावलोकन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के पुनर्जागरण का प्रयास है। जब नई पीढ़ी अपने गौरवशाली पूर्वजों की जीवनगाथा को मंच पर देखती है, तो उसमें न केवल रुचि उत्पन्न होती है, बल्कि एक सांस्कृतिक आत्मविश्वास भी जन्म लेता है।
युवाओं की यह मानसिकता ही आने वाले भारत की बुनियाद है — एक ऐसा भारत जो आधुनिक भी है और अपनी जड़ों से जुड़ा भी।
‘सम्राट विक्रमादित्य’ महानाट्य ने यह सिद्ध किया है कि संस्कृति केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा भी है।
डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश आज न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रहा है, बल्कि *संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में* भी एक मिसाल बन गया है।
यह पहल केवल एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे भारत की चेतना को जागृत करने वाली है। क्योंकि जब युवा पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास को समझेगी, तभी वह *स्वाभिमान, आत्मविश्वास और संस्कार* से युक्त नागरिक बन सकेगी।
‘सम्राट विक्रमादित्य’ नाटक केवल मंच पर प्रस्तुत इतिहास नहीं है — यह संदेश है कि भारत का भविष्य तभी उज्जवल होगा, जब वह अपनी विरासत को गर्व से जीएगा। और इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण के केंद्र में हैं – मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, जिन्होंने सिद्ध कर दिया है कि संस्कृति ही राष्ट्र की आत्मा है, और उसे जीवित रखना ही सच्चा राष्ट्रनिर्माण है


























